Home National अतिरिक्त और स्थायी न्यायाधीशों को मिलेगी समान पेंशन: सुप्रीम कोर्ट का आदेश

अतिरिक्त और स्थायी न्यायाधीशों को मिलेगी समान पेंशन: सुप्रीम कोर्ट का आदेश

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सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी उच्च न्यायालयों के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के लिए समान पेंशन का आदेश दिया है, चाहे उनकी नियुक्ति की प्रकृति या सेवा अवधि कैसी भी रही हो। कोर्ट ने कहा है कि संवैधानिक पदों पर कार्यरत न्यायाधीशों के मामले में ‘वन रैंक, वन पेंशन’ का सिद्धांत लागू होना चाहिए।


निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पेंशन भुगतान में किसी भी तरह का भेदभाव स्वीकार्य नहीं होगा। विशेष रूप से, उच्च न्यायालय के अतिरिक्त और स्थायी न्यायाधीशों को समान पेंशन मिलनी चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश बीआर गवाई, जस्टिस आगस्टिन जार्ज मसीह और के विनोद चंद्रन की पीठ ने कहा कि न्यायाधीशों की पेंशन में वर्गीकरण, चाहे वे बार से हों या जिला न्यायपालिका से, या वे स्थायी हों या अतिरिक्त, संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

समान पेंशन की आवश्यकता पर जोर

पीठ ने यह भी कहा कि किसी न्यायाधीश को सेवा के आधार पर पेंशन से वंचित नहीं किया जा सकता। निर्णय में कहा गया कि उच्च न्यायालय के सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को समान पेंशन मिलनी चाहिए, क्योंकि जब वे न्यायाधीश बनते हैं, तो उनकी नियुक्ति तिथि के आधार पर भेद करना अनुचित होगा।

पीठ ने माना कि जब एक न्यायाधीश कार्यकाल के दौरान समान वेतन और भत्ते प्राप्त करता है, तो सेवानिवृत्ति के बाद भी उनके पेंशन में भेदभाव करना संविधान के खिलाफ होगा।

कोर्ट के अन्य विचार

न्यायालय ने यह भी माना कि जिला न्यायाधीश से उच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने वाले और बार से आए न्यायाधीश दोनों को समान पेंशन मिलनी चाहिए। सेवा की अवधि के बीच का अंतर पेंशन के भुगतान का आधार नहीं बन सकता।

इसके अलावा, यदि कोई न्यायाधीश एनपीएस योजना लागू होने के बाद भी राज्य न्यायपालिका में नियुक्त हुआ है, तो उसे भी 1954 के अधिनियम के तहत सामान्य भविष्य निधि का लाभ मिलेगा।

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि स्थायी और अतिरिक्त न्यायाधीशों के बीच पेंशन को लेकर कोई कृत्रिम भेदभाव नहीं होना चाहिए। अतिरिक्त न्यायाधीशों को भी वार्षिक 13.50 लाख रुपये की समान मूल पेंशन मिलेगी। फैमिली पेंशन और ग्रेच्युटी में भेदभाव को भी कोर्ट ने अनुचित करार दिया है।

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