नई दिल्ली।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) आज देश की 36 प्रशासनिक इकाइयों (28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश) में से 21 में सरकार चला रही है। इस प्रभावशाली विस्तार का श्रेय भले ही प्रत्यक्ष रूप से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व को दिया जाए, लेकिन पर्दे के पीछे एक मजबूत रणनीति ने भी अहम भूमिका निभाई है — और वह है जातीय संतुलन का फार्मूला।

भाजपा ने पिछले एक दशक में जिस प्रकार सभी जातियों, वर्गों और समुदायों को पार्टी और सरकार के महत्वपूर्ण पदों में प्रतिनिधित्व दिया है, उसने पार्टी को “सर्वसमावेशी राष्ट्रीय दल” के रूप में स्थापित कर दिया है। दिल्ली से लेकर मिजोरम तक और मध्य प्रदेश से लेकर लद्दाख तक, बीजेपी ने यह सुनिश्चित किया है कि हर जातीय समूह को सशक्त भागीदारी मिले।
हर समुदाय को प्रतिनिधित्व देने की रणनीति
एसटी वर्ग: छत्तीसगढ़ में विष्णु देव साय को मुख्यमंत्री बनाकर आदिवासी समुदाय को साधा गया।
ओबीसी वर्ग: मध्य प्रदेश में मोहन यादव और हरियाणा में नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई।
वैश्य समाज: मध्य प्रदेश बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल और दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता इसी वर्ग से आते हैं।
दलित समुदाय: हरियाणा में पाल-गड़रिया समाज को अनुसूचित जाति में शामिल कर बीजेपी ने सामाजिक न्याय का संकेत दिया।
सवर्ण नेतृत्व: यूपी के योगी आदित्यनाथ (राजपूत), महाराष्ट्र के देवेंद्र फडणवीस और राजस्थान के भजनलाल शर्मा (दोनों ब्राह्मण) इसकी मिसाल हैं।
अब बारी पंजाबी समुदाय की?
अब जबकि पार्टी संगठन के शीर्ष पद – राष्ट्रीय अध्यक्ष – को लेकर चर्चाएं तेज हैं, राजनीतिक गलियारों में यह कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी इस बार पंजाबी समुदाय को नेतृत्व देने की दिशा में कदम बढ़ा सकती है। पूर्व हरियाणा मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर का नाम चर्चा में है, जो स्वयं पंजाबी पृष्ठभूमि से आते हैं। खट्टर के अनुशासित प्रशासनिक अनुभव और संगठन पर मजबूत पकड़ को देखते हुए, उन्हें अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी जा सकती है।
जातीय संतुलन नहीं, सत्ता का चाणक्य नीति
भाजपा का यह जातीय-सामाजिक संतुलन केवल एक “वोट बैंक” साधने की कवायद नहीं, बल्कि एक चाणक्य नीति है — जिससे पार्टी हर वर्ग में अपनी राजनीतिक जड़ें मजबूत कर रही है। यही रणनीति बीजेपी को न केवल सत्ता में पहुंचा रही है, बल्कि उसे देश के सबसे बड़े राजनीतिक दल के रूप में टिकाए रखने में भी मदद कर रही है।
इसके अतिरिक्त गोवा में प्रमोद सावंत, जो मराठा समुदाय से हैं, को मुख्यमंत्री बनाया गया। वहीं अल्पसंख्यक समुदाय की बात की जाए तो अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू, जो बौद्ध समुदाय से हैं, को मुख्यमंत्री बनाया गया। हालांकि बीजेपी ने मुस्लिम समुदाय को अभी तक मुख्यमंत्री जैसे बड़े पदों पर नियुक्त नहीं किया है, लेकिन अल्पसंख्यक मोर्चा जैसे संगठनों के माध्यम से इस समुदाय को जोड़ने की कोशिश जरूर की है।