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वक्फ कानून पर केंद्र का जवाब: 1923 से 1995 तक सिर्फ मुस्लिमों को वक्फ का अधिकार, 2013 में बदला नियम

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ एक्ट में हुए संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बुधवार को लगातार दूसरे दिन सुनवाई हुई। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पक्ष रखते हुए कहा कि वक्फ कानून में बदलाव से पहले करीब 97 लाख लोगों से राय ली गई थी। उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।


एसजी मेहता ने बताया कि 1923 से लेकर 1995 तक के वक्फ कानूनों में केवल मुसलमानों को ही वक्फ करने का अधिकार था, लेकिन 2013 में हुए बदलाव के बाद किसी भी व्यक्ति को वक्फ करने की अनुमति दे दी गई। सरकार ने अब इस प्रावधान को संशोधित करते हुए शर्त रखी है कि वक्फ करने वाला कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम धर्म का अनुयायी होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि इस संशोधन से पहले 25 राज्य वक्फ बोर्डों और राज्य सरकारों से सलाह ली गई थी। कुछ सुझावों को स्वीकार किया गया जबकि कुछ को नहीं। सरकार का दावा है कि संशोधन के हर पहलू पर विस्तार से चर्चा की गई है।

सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि क्या सरकार अपने ही दावे की जांच स्वयं करेगी? इस पर मेहता ने कहा कि शुरुआती मसौदे में कलेक्टर को निर्णय लेने की शक्ति दी गई थी, लेकिन यह सुझाव आया कि निर्णय लेने वाला अधिकारी कलेक्टर के बजाय कोई और हो। अब राजस्व अधिकारी केवल रिकॉर्ड की जांच करेगा, जबकि अंतिम स्वामित्व का निर्णय अदालत में हो सकता है।

मेहता ने कहा कि अगर किसी संपत्ति पर लंबे समय से वक्फ के तौर पर इस्तेमाल हो रहा है, तो भी यह देखा जाएगा कि वह जमीन निजी है या सरकारी। अगर जमीन सरकारी रिकॉर्ड में सरकारी मानी जाती है, तो सरकार को उसकी जांच करने का अधिकार है।

इससे पहले मंगलवार को वरिष्ठ वकीलों कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलीलें दी थीं। उन्होंने सवाल उठाया था कि सौ-दो सौ साल पुराने वक्फ के कागजात आज कैसे उपलब्ध कराए जा सकते हैं। इस पर केंद्र ने स्पष्ट किया कि संपत्ति के दावों की जांच कानूनी प्रक्रिया के तहत ही होगी और सभी को न्यायिक उपायों का विकल्प मिलेगा।

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