Thursday, May 22, 2025
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‘अप्सरा’ रिएक्टर के निर्माता डॉ. श्रीनिवासन का निधन, भारत ने खोया एक महान वैज्ञानिक

भारत के परमाणु कार्यक्रम को नई दिशा देने वाले वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एम.आर. श्रीनिवासन का मंगलवार को ऊटी में 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने देश के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर ‘अप्सरा’ के निर्माण में अहम भूमिका निभाई थी। डॉ. श्रीनिवासन को महान वैज्ञानिक डॉ. होमी जहांगीर भाभा के साथ काम करने का गौरव प्राप्त हुआ था।


डॉ. भाभा की योजनाओं को किया साकार

साल 1955 में मात्र 25 वर्ष की उम्र में डॉ. श्रीनिवासन भारतीय परमाणु प्रतिष्ठान, मुंबई से जुड़े। यहीं पर उन्हें डॉ. भाभा के साथ काम करने का अवसर मिला और वे उनकी टीम का हिस्सा बने। डॉ. भाभा की आकस्मिक विमान दुर्घटना में मृत्यु से पहले ही उन्होंने भारत के परमाणु कार्यक्रम की लंबी योजना तैयार कर ली थी, जिसे आगे बढ़ाने में डॉ. श्रीनिवासन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

परमाणु कार्यक्रम की कमान संभाली

डॉ. भाभा के बाद जब डॉ. विक्रम साराभाई ने अंतरिक्ष कार्यक्रम की बागडोर संभाली, तब डॉ. श्रीनिवासन ने डॉ. होमी सेठना के साथ मिलकर भारत के परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। वे न केवल परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव रहे, बल्कि भारतीय परमाणु ऊर्जा निगम लिमिटेड (NPCIL) के संस्थापक अध्यक्ष भी बने।

शुरुआती जीवन और शिक्षा

डॉ. मलूर रामासामी श्रीनिवासन का जन्म 5 जनवरी 1930 को बेंगलुरु में हुआ था। उन्होंने मैसूर के इंटरमीडिएट कॉलेज से विज्ञान की पढ़ाई की, जहां संस्कृत और अंग्रेजी उनकी वैकल्पिक भाषाएं थीं। बाद में उन्होंने यूवीसीई (तत्कालीन एम. विश्वेश्वरैया कॉलेज) से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक (1950) और मास्टर्स (1952) की डिग्री ली। 1954 में उन्होंने कनाडा की मैकगिल यूनिवर्सिटी से गैस टरबाइन प्रौद्योगिकी में पीएचडी पूरी की।

राष्ट्रीय जिम्मेदारियां और उपलब्धियां

1955 में परमाणु ऊर्जा विभाग से जुड़े डॉ. श्रीनिवासन को 1959 में भारत के पहले परमाणु ऊर्जा स्टेशन के लिए प्रमुख परियोजना इंजीनियर नियुक्त किया गया। उन्होंने 1987 में परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष और विभाग के सचिव का पद संभाला। उनके नेतृत्व में देश में 18 परमाणु ऊर्जा इकाइयों की स्थापना हुई।

सम्मान और योगदान

डॉ. श्रीनिवासन को भारत सरकार ने उनके अतुलनीय योगदान के लिए पद्म श्री (1984), पद्म भूषण (1990) और पद्म विभूषण (2015) से सम्मानित किया। वे 1996 से 1998 तक योजना आयोग के सदस्य रहे और ऊर्जा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभागों का दायित्व संभाला। इसके अतिरिक्त, वे दो बार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के सदस्य भी रहे।

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