Sunday, May 18, 2025
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AK-47 की गूंज में दफन साजिश: मंत्री बृजबिहारी की हत्या की असली कहानी!

13 जून 1998: बिहार की राजनीति को झकझोर देने वाली एक हत्या की कहानी

13 जून 1998 की शाम करीब पांच बजे, पटना एम्स में भर्ती राज्य के मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के वरिष्ठ नेता बृजबिहारी प्रसाद की अस्पताल के अंदर ही गोली मारकर हत्या कर दी गई। इस वारदात ने न सिर्फ बिहार की राजनीति बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया था।


दोहरे सुरक्षा घेरे के बावजूद हमला

बृजबिहारी प्रसाद को दो लेयर की कड़ी सुरक्षा मिली हुई थी—पहली परत में 22 कमांडो और दूसरी परत में बिहार पुलिस के जवान तैनात थे। इसके बावजूद, एक एंबेसडर कार और एक बुलेट मोटरसाइकिल पर सवार होकर पांच हथियारबंद हमलावर अस्पताल पहुंचे और सीधे उस वार्ड में घुसे, जहां मंत्री भर्ती थे। वहां अंधाधुंध फायरिंग के बाद सभी हमलावर फरार हो गए।


चश्मदीदों के मुताबिक, इस हमले की अगुवाई उत्तर प्रदेश के कुख्यात अपराधी श्रीप्रकाश शुक्ला ने की थी। उसके साथ अनुज प्रताप सिंह, सुधीर त्रिपाठी, मुन्ना शुक्ला और मंटू तिवारी भी थे। हमलावरों की दहशत इतनी थी कि कोई भी सुरक्षाकर्मी उन्हें रोकने की हिम्मत नहीं कर सका।

हत्या की वजह और साजिश की कहानी

बृजबिहारी प्रसाद पर पहले से ही आरोप था कि उन्होंने गैंगस्टर छोटन शुक्ला, उनके भाई भुटकुन शुक्ला और देवेंद्र दूबे की हत्या करवाई थी। इसके बाद छोटन शुक्ला के भाई मुन्ना शुक्ला ने प्रतिशोध की कसम खाई थी।

बताया जाता है कि मुन्ना शुक्ला ने मोकामा गैंग के सरगना सूरजभान सिंह के माध्यम से श्रीप्रकाश शुक्ला से संपर्क साधा। श्रीप्रकाश शुक्ला ने 11 जून को पटना पहुँचकर एक अखबार दफ्तर में जाकर यह चेतावनी भी दी थी कि दो दिनों में बिहार में कुछ बड़ा होने वाला है।

वारदात के बाद की कार्रवाई

इस हत्या के बाद राज्य सरकार पर भारी दबाव पड़ा। 15 जून को एफआईआर दर्ज हुई जिसमें सूरजभान सिंह, श्रीप्रकाश शुक्ला, मुन्ना शुक्ला, मंटू तिवारी और अन्य कई लोगों के नाम शामिल थे। हालांकि कोर्ट ने बाद में कई नामों को मामले से हटा दिया।

हमले में शामिल पांच मुख्य हमलावरों में से श्रीप्रकाश शुक्ला, अनुज प्रताप सिंह और सुधीर त्रिपाठी यूपी पुलिस द्वारा एनकाउंटर में मारे गए। शेष दो आरोपी—मंटू तिवारी और मुन्ना शुक्ला—को कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।

राजनीति में आए बृजबिहारी प्रसाद

बृजबिहारी प्रसाद एक सामान्य परिवार से आते थे। इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद उन्होंने पीडब्ल्यूडी में नौकरी की, लेकिन जातीय दबाव और ठेकेदारी की हिंसा से परेशान होकर राजनीति में आ गए। वह चंद्रशेखर की पार्टी से विधायक बने और बाद में लालू प्रसाद यादव के करीबी बनते चले गए।

विवादों और दुश्मनी की शुरुआत

छोटन शुक्ला की हत्या के बाद उनके भाई भुटकुन शुक्ला ने केशरिया सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया। जब बृजबिहारी ने उन्हें रोकने की कोशिश की, तो मना करने पर 1994 में भुटकुन की भी हत्या कर दी गई। इसके बाद निकली शव यात्रा में डीएम जी. कृष्णैया की हत्या हुई, जिसके लिए आनंद मोहन को दोषी ठहराया गया।

नतीजा

बृजबिहारी की हत्या केवल एक राजनीतिक हत्या नहीं थी, यह बिहार की उस समय की गैंगवार, जातीय तनाव और राजनीति-अपराध गठजोड़ की भयावह तस्वीर थी। आज भी यह घटना राज्य की कानून व्यवस्था और राजनीति के अंधेरे पहलुओं की एक मिसाल मानी जाती है।

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