‘गैंग्स ऑफ माइकल का बाड़ा’ की कहानी:भोपाल में अफसर के 5 बेटे बदला लेने बने गैंगस्टर; इनमें से बेनेडिक हत्याकांड में 10 साल बाद उम्रकैद

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फिल्म डायरेक्टर श्रीराम राघवन की मूवी ‘बदलापुर’ तो आपने देखी होगी। भोपाल के गैंगस्टर ब्रदर्स की कहानी इसी मूवी की तरह है। इनकी चर्चा इसलिए हो रही है कि 29 अगस्त को भोपाल की जिला अदालत ने 10 साल पुराने बहुचर्चित बेनेडिक हत्याकांड के आरोपी आसिफ को उम्रकैद की सजा सुनाई है। गैंगस्टर ब्रदर्स जागीरदार परिवार से ताल्लुक रखते हैं। बदले की भावना ने इनके जीवन की दिशा ही बदल दी।

तीन चाचाओं की हत्या का बदला लेने के लिए 5 भाइयों ने क्राइम की दुनिया में एंट्री की। अपराध के दलदल में ऐसे फंसे कि फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। इन पर 170 केस दर्ज हैं। खौफ इतना था कि मोहल्ले का नाम ही बड़े भाई के नाम पर ‘माइकल का बाड़ा’ पड़ गया। ये इलाका चर्च रोड, जहांगीराबाद में आता है। जानते हैं कि आखिर कैसे सीधे-सादे अफसर के पांचों बेटे जुर्म की दुनिया में आए और बेताज बादशाह बन गए। पढ़िए गैंगस्टर ब्रदर्स के अपराध जगत में कदम रखने से लेकर उनके जुल्मों की कहानी…

पहले परिवार के बारे में जान लेते हैं
उत्तर प्रदेश के ललितपुर के रहने वाले जॉन जाॅर्ज। 30-40 गांवों की जागीरदारी थी। करीब 150 साल पहले भोपाल के चर्च रोड में जमीन लेकर रहने लगे। खेती के लिए करीब 50 एकड़ जमीन खरीदी। सात बेटों में एक बेटा आर्ची जॉन आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया (ASI), नागपुर में अफसर था। आर्ची जॉन के 5 बेटे माइकल, स्टेनली, जेम्स, पीटर और बेनेडिक थे। इनमें माइकल सबसे बड़ा और बेनेडिक सबसे छोटा था। सभी अपनी मां अरियट के साथ भोपाल में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। माइकल और स्टेनली बोर्डिंग स्कूल में साथ पढ़ते थे। 18 साल का माइकल 12वीं में था, 14 साल का स्टेनली 8वीं में था।

बदले की आग ने बना दिया क्रिमिनल
इसी बीच उनके तीन चाचाओं की समुदाय विशेष से जुड़े क्रिमिनल्स ने हत्या कर दी। माइकल को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि वह स्कूल छोड़कर घर आ गया। उसने बदला लेने की ठानी। नवंबर 1979 को टीन शेड इलाके में माइकल ने छोटे भाई स्टेनली के साथ मिलकर चाचा के हत्यारे को मार डाला। पुलिस ने स्टेनली को बाल सुधार गृह भेज दिया, जबकि करीब दो साल तक फरारी काटने के बाद माइकल ने कोर्ट में सरेंडर कर दिया। हालांकि एक बार क्राइम की दुनिया में कदम रखने के बाद फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

तीन भाई और करने लगे क्राइम
लोगों को लगा कि माइकल के जेल में जाने के बाद शांति हो जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं था। पीटर-जेम्स ने अपराध की दुनिया में कदम बढ़ा दिया। वह भी बदला लेने की नीयत से क्राइम करने लगे। उस समय बेनेडिक की उम्र कम थी। देखा-दिखी वह भी छोटे-मोटे क्राइम करने लगा।

चाचा की हत्या में जेल गए, दो बरी
1 सितंबर 2019 को अहीरपुरा के रहने वाले माइकल के चाचा जॉन जाॅर्ज की हत्या कर दी गई थी। मामले में स्टेनली, पीटर, जेम्स को आरोपी बनाया गया। पुलिस ने दावा किया कि प्रॉपर्टी विवाद में तीनों ने मिलकर हत्या की है। 31 मार्च को कोर्ट ने स्टेनली और पीटर को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया, जबकि जेम्स फरार है।

माइकल बंधुओं के अधिकांश केस लड़ने वाले सीनियर एडवोकेट जगदीश गुप्ता बताते हैं कि चारों भाई माइकल का साथ देते थे। पांचों के खिलाफ 170 केस दर्ज हैं। देखते ही देखते वे करोड़ों के मालिक हो गए। अब इनका वर्चस्व समाप्त हो चुका है। गुप्ता ने बताया कि बेनेडिक LLB करना चाहता था। उसने एक साल पढ़ाई भी की थी। बेनेडिक पर ही सबसे कम 5 केस दर्ज थे। जगदीश बताते हैं कि बेनेडिक शौकीन-मिजाज था। वह फैशन में रहा करता था। उसे गाने का भी शौक था।माइकल बंधुओं के अधिकांश केस लड़ने वाले सीनियर एडवोकेट जगदीश गुप्ता बताते हैं कि चारों भाई माइकल का साथ देते थे। पांचों के खिलाफ 170 केस दर्ज हैं। देखते ही देखते वे करोड़ों के मालिक हो गए। अब इनका वर्चस्व समाप्त हो चुका है। गुप्ता ने बताया कि बेनेडिक LLB करना चाहता था। उसने एक साल पढ़ाई भी की थी। बेनेडिक पर ही सबसे कम 5 केस दर्ज थे। जगदीश बताते हैं कि बेनेडिक शौकीन-मिजाज था। वह फैशन में रहा करता था। उसे गाने का भी शौक था।

माइकल-पीटर पर 34-34, स्टेनली पर 66 केस
माइकल पर हत्या, रेप, लूट, हत्या की कोशिश जैसे 34 केस दर्ज हैं। दूसरे नंबर का स्टेनली इससे भी खतरनाक था। उस पर 66 केस हैं, जिनमें से तीन हत्या के मामले हैं। तीसरे नंबर के पीटर पर भी 34 केस हैं। चौथे नंबर के जेम्स पर 31 केस दर्ज हैं। वह चाचा की हत्या के आरोप में तीन साल से फरार है। सबसे छोटे बेनेडिक पर 5 केस हैं।

80 से 90 के दशक में माइकल बंधुओं का खौफ इतना था कि उसके मोहल्ले का नाम ही ‘माइकल का बाड़ा’ पड़ गया था। पांचों भाइयों की यहां तूती बोलती थी। पूरा मोहल्ला माइकल बंधुओं के खौफ के साए में जीता था। जब भी माइकल घर से निकलता था, तो उसके दुश्मन छिप जाते थे। पांच भाइयों में सिर्फ माइकल की शादी हुई थी। पत्नी टीचर है। वह 18 साल के बेटे के साथ भोपाल से दूर रहती है। बाकी चारों बेटों की शादी नहीं हुई। हालांकि अब माइकल का बाड़ा तो तोड़ दिया गया है। यही नहीं, करीब 20 दुकानें भी तोड़ दी गई हैं।

चर्च रोड के रहने वाले ऑटो ड्राइवर आसिफ खान और छोटे बेटे बेनेडिक के बीच रंजिश थी। दरअसल, आसिफ खान के भाई ने बेनेडिक की बहन की बेटी से निकाह किया था। बेनेडिक इस वजह से आसिफ से चिढ़ गया था। यहीं से दोनों के बीच रंजिश शुरू हो गई। आसिफ ने बेनेडिक का मर्डर कर दिया। इसी मामले में आसिफ जेल चला गया। जमानत पर छूटने के बाद आसिफ रियल एस्टेट में एक्टिव हो गया। धीरे-धीरे बड़ा प्रॉपर्टी डीलर बन गया। माइकल की मां कहती हैं कि आसिफ जब छोटा था, तब वह हमारे घर में रहता था। हमने उसके परिवार को पाला। बाद में ऑटो खरीदने तक में बेटों ने मदद की, लेकिन उसी ने 2011 में बेनेडिक को मार डाला।

मां की गवाही से मिली बेनेडिक के कातिल को सजा
बेनेडिक की हत्या के वक्त उसकी मां भी मौजूद थी। कोर्ट में मां ने चश्मदीद के रूप में गवाही दी। इसके बाद कातिलों को सजा मिल सकी। बेनेडिक के वकील के मुताबिक उसकी बहन और भांजा भी घटनास्थल पर मौजूद थे। बाद में दोनों किसी कारण से गवाही से पलट गए। कोर्ट ने मां के बयानों को आधार माना।

मां बोली- यह गलत दोस्ती का खामियाजा
माइकल की 91 साल की मां अरियट बताती हैं कि हम जागीरदार परिवार के हैं। पिता मिलिट्री में रहे। सैकड़ों एकड़ जमीन अब भी है। अधिकतर प्रॉपर्टीज की जानकारी तक नहीं है। बेटों को कान्वेंट स्कूल में पढ़ाया। बड़ा बेटा माइकल गलत संगत में पड़ गया। उसे नशे की लत लग गई। प्रॉपर्टी हड़पने के लिए इलाके में रहने वाले समुदाय विशेष के लोग हमें परेशान करने लगे। तीन-तीन देवरों की हत्या कर दी गई। इसके बाद बेटे अपराध की तरफ मुड़ गए। अरियट का दावा है कि एक बेटा क्राइम करता, तो पुलिस उसके सभी बेटों का FIR में नाम लिख देती थी। बेटों ने पैसे के लिए अपराध नहीं किया। न ही कभी किसी महिला के साथ क्राइम किया। 50 साल से अदालतों के चक्कर काट रहे हैं।

अब क्या है स्थिति
सीनियर एडवोकेट गुप्ता बताते हैं कि 5 भाइयों में से तीन भाई जिंदा हैं। 2011 में बेनेडिक की हत्या कर दी गई। माइकल की भी मौत हो चुकी है। अब इनका वर्चस्व भी समाप्त हो चुका है। उनकी मां अरियट अब 91 साल की हो चुकी हैं। आर्ची जॉन की मौत के बाद उनकी मां को पेंशन मिलती है। इसी के सहारे वे गुजर-बसर कर रही हैं। अधिकतर केसों का निपटारा हो चुका है।

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